इग्नू का सफर

राहुल एक 28 साल का युवा था, जो मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। उसकी ज़िंदगी ऑफिस और मोबाइल के बीच उलझी रहती थी। सुबह देर से उठना, दिनभर कुर्सी पर बैठना और रात को जंक फूड खाकर सो जाना — यही उसकी दिनचर्या थी।

एक दिन ऑफिस में सीढ़ियाँ चढ़ते समय वह अचानक चक्कर खाकर गिर गया। मेडिकल चेकअप के बाद डॉक्टर ने कहा, “तुम्हारी उम्र तो कम है, लेकिन शरीर 50 साल जैसा हो गया है। अगर अब भी नहीं संभले, तो आगे चलकर गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।”

राहुल को जैसे झटका लगा। उस रात वह खुद से सवाल करता रहा — “मैं पैसे तो कमा रहा हूँ, लेकिन क्या ये शरीर जो मुझे हर दिन साथ देता है, उसका ध्यान रख रहा हूँ?”

अगले ही दिन से राहुल ने एक वादा किया — "हर दिन एक घंटा अपने शरीर को दूँगा, क्योंकि अगर शरीर नहीं तो कुछ भी नहीं।"

शुरुआत मुश्किल थी — सुबह उठना भारी लगता था, दौड़ते वक्त साँस फूलती थी, जिम के बाद शरीर दुखता था। पर राहुल ने हार नहीं मानी।

3 महीने बाद…

अब वही राहुल बिना थके 5 किलोमीटर दौड़ लेता था। वह हल्का महसूस करता था, उसकी त्वचा चमकने लगी थी और सबसे बड़ी बात — उसे आत्मविश्वास वापस मिल गया था।

उसके दोस्त पूछते, “क्या खा रहे हो?”

राहुल मुस्कराकर कहता, "मैं खुद को खा नहीं, समय दे रहा हूँ। और यही असली खाना है शरीर के लिए – ध्यान और अभ्यास।"


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सीख:

फिटनेस कोई शौक नहीं, ज़रूरत है। अगर आप रोज़ अपने शरीर को समय नहीं देंगे, तो एक दिन पूरा समय डॉक्टर को देना पड़ेगा।
फिटनेस निवेश है — जो आज किया जाएगा, कल उसका लाभ मिलेगा।

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